Headlines

शिक्षा या व्यापार? प्राइवेट संस्थानों में बढ़ता व्यावसायीकरण

Spread the love

नई दिल्ली: एक मजबूत और विकसित राष्ट्र की नींव अच्छी शिक्षा पर टिकी होती है। शिक्षा केवल एक सेवा नहीं, बल्कि हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, जो उसके भविष्य का निर्माण करता है। लेकिन हाल के वर्षों में, भारत में कई प्राइवेट संस्थानों ने शिक्षा को एक व्यापार में बदल दिया है, जहां मुनाफा गुणवत्ता से ज्यादा अहमियत रखता है।

अधिकांश निजी स्कूल और कॉलेज मनमाने शुल्क वसूल रहे हैं, जिससे शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। ऊंचे एडमिशन चार्ज, महंगी किताबें और वर्दी जैसी अनिवार्य खरीददारी से माता-पिता पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है। सख्त नियमों के बावजूद, कई संस्थान विद्यार्थियों और अभिभावकों का शोषण कर रहे हैं।

शिक्षा का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि ज्ञान, कौशल विकास और राष्ट्र निर्माण होना चाहिए। सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे ताकि शिक्षा का व्यावसायीकरण रोका जा सके और यह सभी के लिए सुलभ और किफायती बनी रहे। नीति-निर्माताओं को शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के साथ-साथ ऐसे निजी संस्थानों पर भी अंकुश लगाना होगा जो इसे सिर्फ लाभ कमाने का जरिया मानते हैं।

नागरिकों और शिक्षा कार्यकर्ताओं की मांग है कि सरकार इस मुद्दे पर सख्त कानून लागू करे और शिक्षा को एक अधिकार बनाए, न कि केवल एक विशेषाधिकार। जब तक सामूहिक प्रयास नहीं होंगे, तब तक शिक्षा सबके लिए समान रूप से उपलब्ध नहीं हो पाएगी।

#गुणवत्तापूर्णशिक्षा #सभीकेलिएशिक्षा #शिक्षाका_व्यावसायीकरण_रोकें