नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन करने जा रहे हैं। यह विश्वविद्यालय वास्तुकला का एक ऐसा भयावह उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसकी प्रेरणा बिहार के खेतों में सतत जलने वाली नाली ईंट की भट्ठियों से ली गई है। लाल रंग, चौड़ा आधार और तिरछा ऊर्ध्वगामी छोर वाली यह संरचना बिहारियों के बीच चर्चा का विषय बन गई है।
दूसरे छायाचित्र में एक अर्धगोलाकार संरचना दिखाई देती है, जिसका ऊपर से हिस्सा काटा गया है। इसमें काली वर्गाकार खिड़कियाँ हैं, जो किसी चिड़ियाँ बेचने वाले की हवादार टोकरी से प्रेरित लगती हैं, जो पहले बिहार के गाँवों में आम दिखती थीं।
तीसरे छायाचित्र में माचिस की खुली और बंद डिब्बियाँ हैं, जिनसे बिहार के रेत माफिया को श्रद्धांजलि दी गई है। यह दृश्य बिहारियों को उनके बचपन की याद दिलाता है, जब वे सड़कों पर माचिस की डिब्बियों को बालू भरकर धागे से खींचते थे।
चौथे छायाचित्र में एक संरचना बिहार की कच्ची शराब की भट्ठियों की याद दिलाती है। वही मटमैला रंग और धुएँ निकालने वाली खिड़कियाँ, जो मिस्र के पिरामिड के ढहने का अहसास कराती हैं। बिहार में हवा से ढहते पुलों की स्मृति भी ताज़ा हो जाती है।
कुल मिलाकर, यह वास्तुकला बिहार के गाँव-घर की स्मृति का स्थूल चिह्न प्रतीत होती है, जिसे देखकर बहुत कम लोग प्रशंसा कर पाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी जैसे व्यक्ति भी यहाँ खुद को फैशनेबली आउट ऑफ प्लेस महसूस करेंगे।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा फैलाई गई अकादमिक बर्बादी के बाद यह चुभने वाली शैली दशकों तक बिहारियों को रुलाती रहेगी। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का खंडहर आज भी इतना सुंदर है कि नया विश्वविद्यालय देखने के बाद लोग बिहार पर रोने को विवश हो जाएंगे।
नालंदा विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा कैंपस है, जो Net Zero Energy, Net Zero Emissions, Net Zero Water और Net Zero Waste मॉडल पर काम करेगा। pic.twitter.com/iRQMFVR1Un
— Narendra Modi (@narendramodi) June 19, 2024